BA Semester-3 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -

(क) नाटक
(ख) नान्दी
(ग) सूत्रधार
(घ) प्रस्तावना (आमुख)
(ङ) नेपथ्य
(च) प्रवेशक
(छ) कञ्चुकी
(ज) विदूषक
 (झ) स्वगतम्
(ञ) प्रकाशम्
(ट) जनान्तिकम्
(ठ) आकाशे या आकाशभाषितम्
(ड) भरतवाक्यम्।

उत्तर -

(क) नाटक

'अवस्थाऽनुकृतिर्नाट्म् नाटकं तत्समारोपात्' अर्थात् अवस्थाओं के अनुकरण को नाट्य कहते हैं जबकि अवस्थाओं के अनुकरण में पात्रों का तथा उसके अभिनय का आरोप नाटक कहलाता है। नाटक की विशेषताएँ प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं-

'नाटकं ख्यात वृत्तं स्यात् पञ्च संघिसमन्वितम्'

अर्थात् नाटक की कथावस्तु इतिहास आदि पर आश्रित होती है। इसमें पाँच संधियाँ होती हैं, न्यूनतम पाँच अङ्क होते हैं, विभाजन अंकों में ही रहता है। शृङ्गार या वीर अंगी, रस होता है तथा शेष अंग रूप होते हैं। नाटक में धीरोदत्त कोटि का होना चाहिए तथा वह उच्च कुल में उत्पन्न क्षत्रिय या राजा होना चाहिए। नाटक सुखान्त होने चाहिए।

(ख) नान्दी

आशीर्वचन संयुक्ता स्त्युतिर्यस्यात् प्रयुव्यते।
देवद्विज नृपादीनां तस्मान्नान्दीति संभिता।

अर्थात् नान्दी पाठ में देव, द्विज, नृप आदि की आशीर्वचन से युक्त स्तुति की जाती है, इसलिए उस मांगलिक या आशीर्वादात्मक पद्य को नान्दी कहते हैं। नान्दी शब्द की रचना नन्द धातु से 'घञ्' एवं 'ङीप् प्रत्ययपूर्वक होती है। इसकी व्युत्पत्ति में कहा गया है कि 'नान्दयति स्तुत्या देवादीनान्दयति' अर्थात् जिसमें देवता आनन्दित होते हैं उसे नान्दी कहा जाता है। नाटयशास्त्र में नाटक की निर्विहन समाप्ति के लिए नान्दी पाठ रूप मङ्गलाचरण किया जाता है। रङ्गस्थल के विघ्नों के समाप्ति के लिए भी नान्दी पाठ सूत्राधार आदि करते हैं। प्रायः नान्दी पाठ में कथानक का संकेत होता है। यह नान्दी तीन प्रकार की होती है-

(1) आशीर्वादात्मक,
(2) नमस्कारात्मक,
(3) कथावस्तु निर्देशात्मक |

'स्वप्नवासवदत्तम्' की नान्दी कथावस्तु निर्देशात्मक हैं।

(ग) सूत्रधार

सूत्र + धृ + णिच् + अण् = सूत्रधार अर्थात् सूत्रं कथानाट्य बीजं धारयति इति सूत्रधारः। अर्थात् सूत्र नाट्य कथा बीज धारयति नियमित रूप से चलाता है। जो नाटक को नियमित रूप से चलाता है उसे सूत्रधार कहते हैं। सूत्रधार रंगमञ्च के देवता का पूजन करता है। नाटक में होने वाली घटनाओं को जो सबसे पहले रंगमञ्च पर आकर सूचित करता है उसे सूत्रधार कहते है।

वस्तुतः बीज के साथ नाट्य के अनुष्ठान को सूत्र कहते हैं। उस सूत्र को धारण करने वाले तथा रंगमंच के देवता आदि की पूजन क्रिया करने वाले को सूत्रधार कहते हैं।

(घ) प्रस्तावना

प्रस्तावना को आमुख एवं स्थापना भी कहते हैं। इसका लक्षण इस प्रकार है -

नरी विदूषकोवाऽपि पारिपार्श्विक एक वा।
सूत्रधारेण संहिताः संलापं यत्र कुर्वते॥
चित्रैर्वाक्यैः स्वाकार्योत्यैः प्रस्तुताक्षेपिथिर्मिथः॥
आमुखं तत्तु विज्ञेयं नाम्ना प्रस्तावना तु सा।।

अर्थात् जहाँ नारी, विदूषक अथवा पारिपार्श्विक सूत्रधार के साथ अपने कार्य के सम्बन्ध में विचित्र वाक्यों के द्वारा इस प्रकार का वार्तालाप करे जिससे कि प्रस्तुत कथा की सूचना हो जाये उसे ही आमुख कहते हैं। इसी का नाम प्रस्तावना भी है।

(ङ) नेपथ्य.

निनो नेथस्य नेर्नेतुर्वा पश्यम् इति नेपथ्यम्।
कुशीलवकुटुम्बकस्य हृहं नेपथ्य मुच्यते॥

अर्थात् अभिनेतागण जहाँ नाटकोचित रूप को धारण करते हैं उस स्थान को नेपथ्य कहा जाता. है। नेपथ्य शब्द के तीन अर्थ स्वीकृत हैं-

(अ) वेश धारण करना
(ब) वेश धारण करने का स्थान या रंगभूमि
(स) यवनिका या पर्दा |

नेपथ्यंस्याद् यवनिका रङ्गभूमिः प्रसाधनम् नेपथ्ये तु प्रसाधने।

(च) प्रवेशक

प्रवेशक एक प्रकार से दो अंकों के बीच की अन्तर्वार्ता है, जिसमें कि तृतीय श्रेणी के पात्रों के वार्तालाप द्वारा संक्षेप में भूत या भविष्य के कथांशों का निर्देश कर उनके परस्पर सम्बन्ध को प्रकट कर दिया जाता है। प्रवेशक कभी एक प्रकार का विषकम्भक ही है किन्तु दोनों में थोड़ा अन्तर भी है -

1- विषकम्भक प्रथम अङ्क के पहले आ सकता है जबकि प्रवेशक दो अंकों के बीच में ही आता है।
2- विषकम्भक में मध्यम श्रेणी के पात्र होते हैं, ये संस्कृत बोलते हैं जबकि प्रवेशक में तृतीय श्रेणी के पात्र होते हैं जो ग्रामीण परिवेश की भाषा का प्रयोग करते हैं।

महाकवि भास ने स्वप्नवासवदत्तम् मे प्रवेशक तथा मिश्र विषकम्भक का प्रयोग किया है। जहाँ मध्यम तथा नीच पात्रों का प्रयोग हो वहाँ मिश्र विषकम्भक होता है।

(छ) कञ्चुकी

इसे काञ्चुकीय भी कहा जाता है। यह राजाओं के अन्तःपुर की देख-रेख का कार्य सम्भालता है और रानियों के आदेश का पालन करता है। धार्मिक तथा सच्चरित ब्राह्मण ही कञ्चुकी हो सकता है। वह लम्बे परिधानों को निरन्तर धारण करता हुआ एक राजकीय छड़ी के साथ चलता है। काञ्चुकीय का लक्षण इस प्रकार है-

अन्तः पुरचरोवृद्धो विप्रो गुणगणान्वितः।
सर्व कार्यार्थ कुशलः काञ्चुकीत्यभि धीयते॥
ये नित्यं सत्य सम्पन्नाः काम दोष विजिताः।
ज्ञान विज्ञान कुशलाः काञ्चुकी यास्तु ते स्मृताः॥

(ज) विदूषक

यह हास्य प्रधान पात्र होता है जो विचित्र बातें कहकर नाटक के नायक का सदैव मनोरञ्जन करता है और विशेष रूप से प्रणय आदि कार्यों में नायक की सहायता करता है। विदूषक मात्र हास्य पात्र. ही नहीं होता वह अपने बौद्धिक चातुर्य से नायक को आपत्तियों से बचाता भी है। विदूषक प्रायः स्वादिष्ट भोजन प्रिय होता है अतः इसे 'पेटू' भी कहा जा सकता है। विदूषक का लक्षण इस प्रकार है-

कुसुमवसन्ताद्यधिः कर्मवयुर्वेष भाषाद्यैः।
हास्यकरः कलहरति विदूषकः स्यात् स्वकर्मज्ञः

अर्थात् जो अपने शारीरिक हाव-भाव - भाषण से दर्शकों को हंसाता है वह विदूषक कहलाता है। 'स्वप्नवासवदत्तम' में वसन्तक नामक विदूषक है।

(झ) स्वगतम्

मन ही मन में कोई विचार करना अथवा किसी व्यक्ति की सुनी गयी बात का स्पष्ट उत्तर न देकर मात्र मन ही मन मे उत्तर दे देना 'स्वगतम्' कहलाता है। इसे 'आत्मगतम्' भी कहते हैं। यह किसी भी पात्र की अपनी स्वयं की मानसिक विचारधारा है जिसे वह सामने वाले व्यक्ति से प्रकट नहीं करता है। इसका लक्षण करते हुए दशरूपकार धनञ्जय कहते हैं कि -

'अश्राव्यं स्वगतं मतम्' अर्थात् जो सामने वाले व्यक्ति को सुनाई न पड़े अपितु मन ही मन विचार करना 'स्वगतम्' कहलाता है, 'स्वगतम् स्वदि स्थितम्। यह नाटक का एक तत्व है, जिसमें मन में आयी हुई बात को प्रकट नहीं किया जाता है।

(ञ) प्रकाशम्

'सर्वश्राव्यं प्रकाशं स्यात्' अर्थात् जिसे सभी लोग सुनते हैं अथवा जो सर्वश्रव्य है उसे प्रकाशम्' कहा जाता है। जहाँ स्वगतम् अपने हृदय मात्र में रहने वाले विचार हैं वहीं 'प्रकाशम्' वे विचार हैं जो हृदय से निकलकर सम्मुख वाले व्यक्ति को सुनाया जाता है। यदि और भी अन्य व्यक्ति उपस्थित हैं तो वे भी 'प्रकाशम्' के अंतर्गत कही गयी बातों को सुन सकते हैं।

'प्रकाशं ज्ञात्यमन्येषाम्' अर्थात् जो अन्य व्यक्ति को भी ज्ञात होता है वह प्रकाश कहलाता है। यह भी नाटक का एक तत्व है जिसमें मन में आया विचार कह दिया जाता है।

(ट) जनान्तिकम्

'अन्योऽन्यामंभणंयत्स्याञ्जनान्ते तत् जनान्तिकम अर्थात् परस्पर एक-दूसरे तक सीमित रहने वाली तथा किसी से छिपाकर हाथों की ओट में कहा गया तथा समझा गया कथन 'जनान्तिक' कहलाता है। जनान्तिक का जन-सामान्य अर्थ है हाथ की ओट। इस प्रकार कोई बात हाथ की ओट में कही जाती है तो वह जनान्तिक कहलाता है। .

(ठ) आकाशे या आकाशभाषितम्

किं ब्रवीष्येवमित्यादि विनायात्रं ब्रवीतियत्।
श्रुत्वेवनुक्तमप्येकस्तत्स्याकाश भाषितम्॥

अर्थात् रंगमंच पर जब बिना किसी पात्र के आये हुए कुछ कथन किया जाता है तथा बिना प्रत्यक्ष रूप से कुछ कहने पर भी एक के द्वारा सावधानीपूर्वक जो सुना जाता है वह कथन 'आकाशवाणी' कहा जाता है तथा इसे ही नाटक में 'आकाशे' या 'आकाशभाषितम्' कहा जाता है।

(ड) भरतवाक्यम्

संस्कृत नाटकों की यह परम्परा है कि नाटक का प्रारम्भ नान्दी पाठ से होता है जबकि नाटक का समापन 'भरतवाक्य' से होता है। भरतवाक्य में जनकल्याण की कामना की जाती है। इसी को प्रशस्ति भी कहते हैं।

'भरतानां वाक्यमिति भरतवाक्यम्।
भरतवाक्यं नटवाक्यम्
नाटकाभिनय समाप्तौ सामाजिकेभ्यो नटेनाशीर्दीपत इत्यर्थः।

इसे नटवाक्य भी कहते हैं, क्योंकि भरत का अर्थ नट भी होता है और यह नट के मुख से निसृत होती है। कुछ विद्वानों के अनुसार नाट्य शास्त्राचार्य भरत के वाक्य द्वारा प्रतिपादित होने के कारण इसका नाम भरतवाक्य पड़ा। इसमें सभी जनों की कल्याण भावना निवेदित होती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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